कविता: वो कलाई ही नहीं रही कवि यश बीरट : यश

एक कविता उन बहनों के नाम जिनका भाई किसी ना किसी वजह से इस दुनिया में नहीं है । उन बहनों को मेरी तरफ से रक्षाबंधन की बहुत बहुत बधाई हो। मैं भी आपका भाई ही हूं । 
आपके भाई के कलम से एक छोटी सी कोशिश ।

कविता : वो कलाई ही नहीं रही 
कवि : यश बीरट 

वो कलाई ही नहीं रही अब मै राखी का क्या करू ,
मेरा भाई ही उस खुदा ने छीन लिया 
अब मै बेबस , करू तो क्या करू 

बहुत ख्वाहिशें सजो के रखीं थी मैंने 
भाई भी मेरा सारी खुशियां मुझपे लौटाने को त्यार था 
उन खुशियों को नजर लग गई अब मै ख्वाहिशें सजो के क्या करू..

कहा करता था इस बार तुझे आईफोन और एक सूट लाकर दूंगा 
सब कुछ जलकर राख हो गया 
अब उस जले हुए सूट का क्या करू...
वो कलाई ही नहीं रही अब मै राखी का क्या करू ,
मेरा भाई ही उस खुदा ने छीन लिया 
अब मै बेबस करू तो क्या करू 

ना लड़ने वाला रहा ना हसाने वाला 
ना नहीं उम्मीद को जगाने वाला 
अक्सर रो के अपने आप चुप कर जाया करती हूं 
क्युकी अब आंसू पोछने वाला ही नहीं रहा 

हर एक रास्ता नाप दिया है मैंने तेरे पैरों के निशान है ना मिले 
अब मै क्या करू 
हवा में तेरी खुशबू ही नहीं मै सांस लेकर क्या करू 
वो कलाई ही नहीं रही अब मै राखी का क्या करू ,
मेरा भाई ही उस खुदा ने छीन लिया 
अब मै बेबस , करू तो क्या करू 



 

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